तीसवां पारा (पार्ट 2)
18. सूरह तीन:
यह सूरह इंसान की सूरत और सीरत से संबंधित है, अल्लाह ने चीज़ों और जगहों कि क़सम खाकर फरमाया है कि इंसान को सबसे बेहतरीन शक्ल ओ सूरत में बनाया गया है, लेकिन सफलता का पैमाना ईमान और नेक आमाल ही हैं।
19. सूरह अल-अलक़:
इस सूरत की पहली पांच आयात रसूलुल्लाह ﷺ पर पहली वली में गारे हिरा में नाज़िल हुई थी, अल्लाह के एहसान (इंसान की तखलीक़, क़िराअत और किताबत के ज़रिए तमाम मख़लूक़ात पर फज़ीलत का ज़िक्र) , अबू जहल की मजम्मत
20. सूरह क़द्र:
लैलतुल-क़द्र की फज़ीलत यह है कि उस रात क़ुरआन नाज़िल हुआ, यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है, उस पर रहमत के फ़रिश्ते उतरते हैं, यह रात सुकून वाली है, सुबह तक रहती है।
21. सूरह बय्यिनह:
इस सूरह में नबुव्वत, ईखलास की दावत (कोई अमल बगैर ईमान के और ईमान के बगैर इखलास के मोअतबर नहीं) और नेक कामों के अंजाम यानी अच्छी जन्नत मिलने का ज़िक्र है।
22. सूरह ज़िलज़ाल:
क़यामत और खौफनाक ज़लज़ले का ज़िक्र कि उस दिन ज़मीन सब उगल दोगी , नेकी हो या बदी सब ज़ाहिर हो जाएगी
23. सूरह अल-अदियात:
इंसान में दो खराबियां हैं, नाशुक्री और माल की हिर्स
24. सूरह अलक़ारिया:
क़यामक की हौलनाकी का ज़िक्र , भारी आमाल पर जन्नत और हल्के आमाल पर अज़ाब
25. सूरा तकासुर:
दुनिया में पड़ कर आखिरत की ज़िन्दगी भूल जाने की मजम्मत , माल ओ दौलत की कसरत इंसान को हराकर में डाल देती है
26. सूरा अस्र:
सभी इंसान खसारे (घाटे) में हैं, सिवाय उनके जिनमें चार गुण हैं: ईमान, नेक आमाल, हक़ की तलक़ीन और सब्र, इमाम शाफ़ई इसके ज़िमन में कहते हैं कि अगर पूरा क़ुरआन नाज़िल न होता तो भी सिर्फ ये सूरत इंसानों की हिदायत के लिए काफी थी
27. सूरा हुमज़ह:
मुंह पर बुरा भला कहने वाले, चुगली करने वाले , माल ओ दौलत समेट समेट कर रखने वालों के लिए हलाकत की वईद है और ये लोग जहन्नुम के ईंधन बनेगे
28. सूरा फील:
असहाब ए फ़ील के वाक़्ये का ज़िक्र जिसमें पक्षियों के झुंड ने काबा पर चढ़ने वाले हाथियों की सेना पर मिट्टी के पत्थर फेंके, जिससे अल्लाह ने उन्हें भूसे की तरह बना दिया।
29. सूरा क़ुरैश:
कुरैश पर अल्लाह के दो बड़े एहसान (उपकार) , यात्रा में आसानी और खौफ़ से अमन
30. सूरह अलमाऊन:
बखील कुफ्फार और रोजे जज़ा को झुठलाने वाले, नमाज़ में लापरवाही करने वाले, दिखावा करने वाले और छोटी सी चीज़ देने से मना करने वालों (मिस्कीनों को खाना नहीं खिलाने वाले) की मजम्मत
31. सूरा कौसर:
कौसर का इनाम, नमाज़ और क़ुर्बानी का हुक्म, रसूल ﷺ के दुश्मन की ज़िल्लत और रुसवाई का ऐलान।
32. सूरा काफिरुन:
इस सूरा में मुसलमानों को सिखाया गया है कि गैर-मुस्लिमों के साथ कोई भी मेल-मिलाप जायज़ नहीं है जिसमें उन्हें अपनके दीन (धर्म) के सेआर (संस्कारों) को अपनाना पड़े, लेकिन अपने दीन पर अड़िग रहते हुए शांति समझौता किया जा सकता है।
33. सूरा नस्र:
तकमील ए दीन का ऐलान, अल्लाह की मदद की बशारत , और मदद आ जाने पर तसबीह और अस्तगफ़ार का हुक्म
34. सूरह लहब:
अबू लहब और उसकी पत्नी अल्लाह के रसूल को चोट पहुँचाते थे, इस सूरत में उन दोनों की बर्बादी का ज़िक्र है
35. सूरह इख़लास:
काफिरों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुतालबा किया कि वो अपने माबूद का हसब नसब बयान करें इसलिए यह सूरत उतरी जिसमें अल्लाह ने कहा है कि अल्लाह हर तरह से एक है, वह बेनियाज़ है, वह किसी का मोहताज नहीं है, न उसकी कोई सन्तान है, न वह किसी का सन्तान है और न ही उसका कोई सम्बन्धी है।
36. सूरा फलक़:
खुसूसन चार चीज़ों के शर से अल्लाह की पनाह मांगो (मख़लूक़ से शर से, अंधकार से, फूंके मारने वालियों के शर से और हासिद को शर से जब वह हसद करे
37. सूरह नास:
इंसानों के पालनहार, मअबूद और बादशाहत की पनाह मांगो वनवास डालने वाले जिन्नों और इंसानों से
कुछ यहूदियों ने रसूलुल्लाह ﷺ पर जादू करने की कोशिश की, इसका कुछ प्रभाव उन पर भी दिखाई भी दिया अल्लाह ने जादू वगैर शुरूर से पनाह मांगने के लिए ये आखिरी दो सूरतें नाज़िल कीं इन सूरतों को मऊज़तैन भी कहा जाता है