अल क़ुरान : ऐ ईमान वालो तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गये हैं जिस तरह तुमसे पहले लोगो पर फ़र्ज़ किए गये थे ताकि तुम परहेज़गार बनो
सुरह अल-बक़रा (2) आयत 183
उस शख्स का रोज़ा नहीं जिसने रात ही से रोज़े की नियत न की हो।
(अबु दाऊद : 2454 इमाम बुखारी, तिर्मिज़ी, नसाई)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
"जिसने किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराया तो उसे भी उसके बराबर सवाब मिलेगा
और रोज़ेदार के अज्र में कोई कमी न होगी। "
(तिर्मिज़ी 2/171, सही अत्तर्गीब 1/451)
फहाशी व बेहयाई से दूर रहना
:जब तुम रोज़े से हो तो बेहयाई से बचे रहो।"
(बुखारी: अल्फतह 1904)
रोज़ेदार की दुआ रद्द नहीं की जाती
(बेहकी 3/345 )
रोज़ा ढाल है और ज़हन्नुम की आग से बचाने का महफूज़ किला है
(अहमद 2/402)
रोज़ेदार के मुँह की बू अल्लाह के नजदीक मुश्क की खुशबु से भी
ज्यादा पाकीज़ा है
(सहीह मुस्लिम 2/807)
जो अल्लाह के रास्ते में एक दिन का रोज़ा रखे, उस एक दिन के बदले
अल्लाह तआला उसके चेहरे को (ज़हन्नुम की) आग से सत्तर साल की मसाफत
की दुरी पर कर देगा।
( सहीह मुस्लिम 2/808)
"रमजान का महीना वो है, जिसमे क़ुरआन नाजिल किया गया,
जो लोगो को हिदायत करने वाला है और जिसमे हिदायत की
और हक़ और बातिल में फ़र्क़ करने की निशानिया है"
(सूरह - अल बकरह 185)
"यह सिर्फ मेरे रब की मेहरबानी है"
सुरह अल-बक़रा (2) आयत 183
उस शख्स का रोज़ा नहीं जिसने रात ही से रोज़े की नियत न की हो।
(अबु दाऊद : 2454 इमाम बुखारी, तिर्मिज़ी, नसाई)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
"जिसने किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराया तो उसे भी उसके बराबर सवाब मिलेगा
और रोज़ेदार के अज्र में कोई कमी न होगी। "
(तिर्मिज़ी 2/171, सही अत्तर्गीब 1/451)
फहाशी व बेहयाई से दूर रहना
:जब तुम रोज़े से हो तो बेहयाई से बचे रहो।"
(बुखारी: अल्फतह 1904)
रोज़ेदार की दुआ रद्द नहीं की जाती
(बेहकी 3/345 )
रोज़ा ढाल है और ज़हन्नुम की आग से बचाने का महफूज़ किला है
(अहमद 2/402)
रोज़ेदार के मुँह की बू अल्लाह के नजदीक मुश्क की खुशबु से भी
ज्यादा पाकीज़ा है
(सहीह मुस्लिम 2/807)
जो अल्लाह के रास्ते में एक दिन का रोज़ा रखे, उस एक दिन के बदले
अल्लाह तआला उसके चेहरे को (ज़हन्नुम की) आग से सत्तर साल की मसाफत
की दुरी पर कर देगा।
( सहीह मुस्लिम 2/808)
"रमजान का महीना वो है, जिसमे क़ुरआन नाजिल किया गया,
जो लोगो को हिदायत करने वाला है और जिसमे हिदायत की
और हक़ और बातिल में फ़र्क़ करने की निशानिया है"
(सूरह - अल बकरह 185)
"यह सिर्फ मेरे रब की मेहरबानी है"
No comments:
Post a Comment