"क़ुबूल-ए-हक़"
हम ये सोच कर मुस्कुराने लगे
हक़ को पाने में कितने ज़माने लगे
तोहिद क्या है ये जाना है अब
शिर्क व बिदअत से दामन छुड़ाने लगे
मैं अपनी खताओं पे शर्मिंदा हूँ
अश्क़ आँखों से ये झिलमिलाने लगे
दर-बदर भटके हम और भटकते रहे
शुक्र तेरा ऐ मालिक ठिकाने लगे
मैंने नारा लगाया है तोहीद का
शोर देखो वो कैसे मचाने लगे
हम ये सोच कर मुस्कुराने लगे
हक़ को पाने में कितने ज़माने लगे
तोहिद क्या है ये जाना है अब
शिर्क व बिदअत से दामन छुड़ाने लगे
मैं अपनी खताओं पे शर्मिंदा हूँ
अश्क़ आँखों से ये झिलमिलाने लगे
दर-बदर भटके हम और भटकते रहे
शुक्र तेरा ऐ मालिक ठिकाने लगे
मैंने नारा लगाया है तोहीद का
शोर देखो वो कैसे मचाने लगे
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