(अन्सार से मुहब्बत ईमान की पहचान है)
अंनस र. अ. से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
"ईमान की निशानी अन्सार से मुहब्बत रखना और निफ़ाक़ की निशानी अन्सार से कीना (जलन) रखना है।"
(बुखारी)
हदीस शरीफ
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
"गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है ,
जैसे उसने गुनाह किया ही नहीं।"
(इब्ने माज़ा, जिल्द - 2 .हदीस 205)
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