(मोमिन होने का दावा)
किसी मोमिन के लिए जायज़ नहीं कि वह कहे "मैं यक़ीनन मोमिन हूँ" बल्कि कहे मैं इंशाल्लाह मोमिन हूँ।
हज़रत हसन बसरी र. अ. से रिवायत है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद के सामने बयान किया गया कि फलाँ शख्स कहता है कि मैं कतई मोमिन हूँ, हज़रत ने फ़रमाया उससे पूँछो जन्नत में जायेगा या दोज़ख में ,
लोगो ने उससे पूँछा तो उसने कहा : कि अल्लाह ही खूब जनता है।
इब्ने मसऊद ने फ़रमाया दूसरी बात को अल्लाह के सुपुर्द कर दिया पहली बात (मोमिन होने को) को भी अल्लाह के सुपुर्द क्यों नहीं कर दिया (यानि पहले ही कह देता कि मेरा मोमिन होना अल्लाह ही को मालूम है)
यक़ीनन सच्चा मोमिन वही होगा जो अल्लाह तआला के नजदीक मोमिन है और वही जन्नती भी होगा और इसका एतबार उस वक़्त है जब ईमान पर खात्मा हो और किसी को ईमान पर खात्मा होने की खबर नहीं।
(गुनितुत्त तालीबीन - शेख अब्दुल कादिर जिलानी र. अ.)
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