Tuesday, 22 March 2016

मैं पूंछना चाहता हूँ आज के नाम-निहाद सूफियों से और बरेलवी फिरके वालो से
कि अगर अल्लामा इक़बाल मौलाना अल्ताफ हुसेन हाली. सर सय्यद अहमद खान व दीगर उलेमा वगेरा अगर ईमाम अहमद रज़ा बरेलवी साहब के नजदीक (न की अहले मुस्लिम के) बददीन, फ़ासिक़ व काफिर थे तो आज
इक़बाल साहब की अल्ताफ हाली की शायरी को बड़े जौक-ओ-शोक से लोगो के सामने अपनी तकरीरों में शुरू या आखिर में क्यों गुनगुनाते है।

उम्मीद क्या है सियासत के पेशवाओ से
ये खाकबाज़ है रखते है खाक से पेवन्द
(डॉ. इक़बाल)

मुहब्बत की दुनिया में शोलो की जगह नहीं
तो फिर आप अपने घर में ही आग क्यों लगाने चाहते है ?

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