Sunday, 20 March 2016

"इय्या-क नाबुदू व इय्या-क नसतईन" का मफ़हूम 
सूरह फातिहा की आयात न. चार जिसमे कहा गया है कि 
"इय्या-क नाबुदू व इय्या-क नसतईन"
हम तेरी ही इबादत करते है और तुझसे ही मदद मांगते है। 
तो फिर हम दुनिया से जा चुके बुजुर्गो से मदद क्यों मांगे ?

हज़रत इब्ने अब्बास र. अ. से रिवायत है इसे तिरमिज़ी ने नक़ल किया है कि 
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तौहीद इबादत  (एकेश्वरवाद) का स्पष्टीकरण करते हुए
 फ़रमाया : "अगर तुम इबादत में कुछ मांगो तो केवल अल्लाह से मांगो ,
अगर तुम मदद मांगते हो तो भी अल्लाह से ही मांगो। "

इसके अलावा कही सहीह हदीसे है।  आप सहीह अहादीस देखे , आपको मालुम हो जायेगा। 
अल्लाह तआला अपने बन्दों से बेहद करीब है तो फिर गेरुल्लाह से क्यों मांगे ?
"जब मेरे बन्दे तुमसे मेरे बारे में सवाल करे (तो कह दो) कि मैं उनसे करीब हूँ उनकी दुआओ को सुनता हूँ जो भी मुझे पुकारता है। 
अत उन्हें मेरी तरफ पलटना चाहिए और मुझ पर ईमान रखना चाहिए ताकि वे हिदायत पाए। 
(सूरह बकरा 2:186)
उम्मीद है आप तौहीद का मतलब सहीह मायने में समझने की कोशिश करेंगे , इंशाअल्लाह!
और एक बात रसूलुल्लाह का इरशाद है 
की "दुआ इबादत है" (सुनें अबु दावूद)
तो फिर हम दूसरे से दुआ (इबादत) क्यों मांगे 
उससे मगफिरत की तलब क्यों जाहिर करे। 

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