Wednesday, 3 December 2014

या अल्लाह मदद

हाय अफ़सोस ! हिंदुस्तान की ज़हालत आखिर ऐसा रंग लायी की हमारे मुसलमान भाइयो को कुफ्र व शिर्क तक ले गयी।
हज़रात तुफैल बिन संजरा र. अ. हज़रात आइशा र. अ. के सौतेले भाई फरमाते है की मेने ख्वाब में कुछ यहूदियों को देखा और उनसे पूंछा , तुम कौन हो ?
उन्होंने कहा , हम यहूदी है।
मेने कहा , अफ़सोस ! तुम में यह बड़ी खराबी है की हज़रात उज़ैर अ. स. को खुदा का बेटा कहते हो ?
उन्होंने कहा , तुम भी अच्छे लोग हो , लेकिन अफ़सोस ! तुम कहते हो जो खुदा चाहे और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चाहे।
फिर मैं ईसाईयों की जमाअत के पास गया और उनसे भी इसी तरह पूंछा।  उन्होंने भी ऐसा ही जवाब दिया।
मैने उनसे कहा अफ़सोस ! तुम मसीह अ. स. को खुदा का बेटा मानते हो!
उन्होंने भी ऐसा ही जवाब दिया।
मैने सुबह को इस ख्वाब का ज़िक्र लोगों से कर दिया।
फिर दरबारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हाज़िर होकर आपसे भी यह वाक़िआ बयान किया।
आपने पूंछा , क्या किसी और से भी तुमने इसका ज़िक्र किया है ?
मैने कहा , हाँ !
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अब खड़े हो गए और अल्लाह तआला की हम्द व सना बयान की , फिर फ़रमाया की तुफैल र. अ. ने एक ख्वाब देखा है और तुम में से कुछ से बयान भी कर दी है।  मैं चाहता था की तुम्हे कलिमा के कहने से रोक दू , लेकिन फलां -फलां काम की वज़ह से मैं अब तक न कह सका।  याद रखो , अब हरगिज़ (खुदा चाहे और उसका रसूल चाहे ) कभी न कहना , बल्कि यों कहो की सिर्फ अल्लाह अकेला जो चाहे।
(हवाला - तफ़्सीर इब्ने कसीर , पारा 1 , पृष्ठ 74 सूरः बक़र के तीसरे रुकु की तफ़्सीर में।  )

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