तीसरा पारा
इस पारे में दो हिस्से हैं
सूरह बक़रह की आखिरी 34 आयात और सूरह आल ए इमरान की शुरू की 91 आयात
सूरह बक़रह की आखिरी 34 आयात में तीन अहम बातें हैं
1. दो बड़ी आयतें 2. दो नबियों का ज़िक्र 3. सदक़ा और सूद
1. दो बड़ी आयतें
आयतल कुर्सी (फज़ीलत में सबसे बड़ी) इसमें 17 मर्तबा अल्लाह का ज़िक्र है...
आयत ए मदायना (मिक़दार में सबसे बड़ी) इसमें तिज़ारत और क़र्ज़ मज़कूर है
2. दो नबियों का ज़िक्र
हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का नमरूद से मुबाहसा और उनका अल्लाह तआला से मुर्दों को ज़िन्दा करने की दुआ ताकि इस मुशाहिदे से क़ल्बी इत्मिनान हासिल हो
हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम जिन्हें अल्लाह ने सौ साल तक सुलाने के बाद ज़िन्दा किया
3. सदक़ा और सूद
बज़ाहिर सदक़े से माल कम होता है और सूद से बढ़ता है मगर दर हक़ीक़त सदक़े से बढ़ता है और सूद से कम होता है...
सूरह आल ए इमरान की 91 आयात में चार अहम बातें हैं
1. सूरह बक़रह से मुनासिबत 2. अल्लाह तआला की क़ुदरत के क़िस्से 3. अहले किताब से मुनाज़रा , मुबाहिला और मुफाहिमा 4. साबिक़ीन अम्बिया से अहद
1. मुनासबत
सूरह बक़रह में अक्सर ख़िताब यहूद से है जबकि सूरह आल ए इमरान में रू ए सुखन नसारा की तरफ है
2. अल्लाह तआला की क़ुदरत के चार क़िस्से
पहला क़िस्सा जंग ए बदर का है , 313 ने 1000 से लश्कर को शिकस्त दी
दूसरा क़िस्सा मरियम अलैहिस्सलामके पास बे मौसम फ़ल का पाया जाना है
तीसरा क़िस्सा हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम को बुढ़ापे में औलाद अता होने का है
चौथा क़िस्सा हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का बगैर बाप के पैदा होते ही बात चीत करने, जवानी में हैरानकुन मोअजज़ात वाला होने और आखिर में आसमानपर उठाए जाने का है...
3. मुनाज़िरह, मुबाहिला और मुफाहिमा (सुलह)
अहले किताब से मुनाज़िरा हुआ फिर मुबाहिला हुआ कि तुम अपने अहलो अयाल को लाओ और मैं अपने अहलो अयाल को लाता हूं फिर मिल कर खुशू व खुज़ू से अल्लाह से दुआ मांगते हैं कि हम में से जो झूठा है उस पर खुदा की लानत हो , वह तैयार न हुए तो मुफ़ाहिमा हुआ यानी ऐसी बात की दावत दी गई जो सब को तस्लीम हो और वह है ला इलाह इललल्लाह
4. अम्बिया ए साबिक़ीन से अहद
अम्बिया ए साबिक़ीन ने अहद ये लिया गया कि जब आखिरी नबी आएं तो तुम उसकी बात मानोगे , उस पर ईमान लाओगे और तुम्हारे बाद आए तो तुम्हारी उम्मतें उस पर ईमान लाएंगी...
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