अल्लाह रहम करे ऐसे आलिमो पर जो संघ का साथ दे दे या काफिरो के साथ हो ले
मगर उनकी नजर में मुस्लिम की कोई अहमियत नहीं और उनके खिलाफ फतवे पे फतवे
पहले अंग्रेजो का साथ दिया आज संघ का 2002 के दंगइयो का।
अफ़सोस सद अफ़सोस !
इनके फतवे मुलाहिज़ा फ़रमाये
"वहाबी यहूद ओ नसारा , हिन्दुओ और मजुसियो से भी बदतर हैा ओर उनका कुफ्र इनसे भी अधिक है। "
(फतवा रिजविया 6-13)
"देवबंदी शरीअत के हुक़्म के अनुसार काफिर व मुर्तद है। "
(तफ़्सीर मिजानुल अदयान 2-270)
नईमुद्दीन मुरादाबादी लिखते है
इब्ने तैमिया और उसके शागिर्द इब्ने कययिम जोजी आदि की किताबो पर कान धरने से बच्चों।
(फतवा नईमुद्दीन 33)
"जो आला हज़रत को बुरा कहे उसके पीछे भी नमाज़ जायज़ नहीं। "
(फतवा नईमिया -64)
"वहाबी की नमाज़ पढ़ना कुफ्र है। "
(मलफुजात 78)
आगे जनाब रज़ा साहब कहते है
वहाबी मुर्तद व कपटी है ऊपर-ऊपर से कलमा पढ़ते है।
(अहकामे शरीअत - 112)
यह गैब जान्ने वाले थे जो इन्हे सब याद है के कौन दिल से कलमा पढता है और कौन ऊपर-ऊपर से।
"इब्लीस की गुमराही वहबिया की गुमराही से हलकी है। "
(अहकामे शरीअत - 117)
इन्हे इब्लीस से ज्यादा ज्ञान हो गया , बड़े पहुंचे हुए है। इब्लीसो के शैतानुल औलिया है शायद
"देवबंदियों की किताबें इस योग्य है कि उनपर पेशाब किया जाये। उन पर पेशाब करना पेशाब को और ज्यादा नापाक करना है। ऐ अल्लाह हमें देवबंदियों की अर्थात शैतान के बन्दों से पनाह में रखे।
(सुभानुस्सुबह - 75)
इब्ने तैमिया बदमझब् था (जा अल हक़ 465)
इब्ने कययिम बद दीन था (फतवा रिजविया 95)
शोकानी बदमजहब था (सैफुल मुस्तफा 95)
ऐसे अक़ीदे थे हमारे पहुंचे हुए मिठे और प्यारे अहमद रज़ा बरेलवी वाले बुजुर्गो के।
अल्लाह उम्मत मुस्लिमा को सहीहुल अक़ीदा बनाये।
मगर उनकी नजर में मुस्लिम की कोई अहमियत नहीं और उनके खिलाफ फतवे पे फतवे
पहले अंग्रेजो का साथ दिया आज संघ का 2002 के दंगइयो का।
अफ़सोस सद अफ़सोस !
इनके फतवे मुलाहिज़ा फ़रमाये
"वहाबी यहूद ओ नसारा , हिन्दुओ और मजुसियो से भी बदतर हैा ओर उनका कुफ्र इनसे भी अधिक है। "
(फतवा रिजविया 6-13)
"देवबंदी शरीअत के हुक़्म के अनुसार काफिर व मुर्तद है। "
(तफ़्सीर मिजानुल अदयान 2-270)
नईमुद्दीन मुरादाबादी लिखते है
इब्ने तैमिया और उसके शागिर्द इब्ने कययिम जोजी आदि की किताबो पर कान धरने से बच्चों।
(फतवा नईमुद्दीन 33)
"जो आला हज़रत को बुरा कहे उसके पीछे भी नमाज़ जायज़ नहीं। "
(फतवा नईमिया -64)
"वहाबी की नमाज़ पढ़ना कुफ्र है। "
(मलफुजात 78)
आगे जनाब रज़ा साहब कहते है
वहाबी मुर्तद व कपटी है ऊपर-ऊपर से कलमा पढ़ते है।
(अहकामे शरीअत - 112)
यह गैब जान्ने वाले थे जो इन्हे सब याद है के कौन दिल से कलमा पढता है और कौन ऊपर-ऊपर से।
"इब्लीस की गुमराही वहबिया की गुमराही से हलकी है। "
(अहकामे शरीअत - 117)
इन्हे इब्लीस से ज्यादा ज्ञान हो गया , बड़े पहुंचे हुए है। इब्लीसो के शैतानुल औलिया है शायद
"देवबंदियों की किताबें इस योग्य है कि उनपर पेशाब किया जाये। उन पर पेशाब करना पेशाब को और ज्यादा नापाक करना है। ऐ अल्लाह हमें देवबंदियों की अर्थात शैतान के बन्दों से पनाह में रखे।
(सुभानुस्सुबह - 75)
इब्ने तैमिया बदमझब् था (जा अल हक़ 465)
इब्ने कययिम बद दीन था (फतवा रिजविया 95)
शोकानी बदमजहब था (सैफुल मुस्तफा 95)
ऐसे अक़ीदे थे हमारे पहुंचे हुए मिठे और प्यारे अहमद रज़ा बरेलवी वाले बुजुर्गो के।
अल्लाह उम्मत मुस्लिमा को सहीहुल अक़ीदा बनाये।
No comments:
Post a Comment