#हमारे_मदरसे_और_हमारे_उलेमा
आज हम मजबूर भिखारियो का प्याला लिए हुए अपना कानून मांगते है,अपना तालीम ए निज़ाम मांगते है और एक छोटे से दायरे मे हम ये समझते है कि नबी के वारिस ये उलेमा है मदरसो की चार दिवारी मे तैयार हो रहे है जिनके हाथ मे कानून नही जिनके हाथ मे सियासत नही जिनके हाथ मे मइशत नही जिनके हाथ मे माशियत नही जो हाशिये पर है जिनको तरस वाली निगाहो से देखा जाता है जिन पर इल्ज़ामात थोपो जाते है ...!!
जिनका काम तो ये था वो अबुबकर सिद्दीक रजि०,उमर ए फारूक़ रजि०,उस्मान इब्ने अफ्फान रजि०और अली इब्ने तालीब रजि०की खिलाफत सभालते जिनका काम ये था की पूरी ज़िन्दगी की बागडोर उनके पास होती वो मरजा होते क्या कभी ऐसा हुआ की 1200सौ सालो की तारीख मे तालिम से हमारे किसी भी मुल्क़ मे दो निज़ाम आए या दो क़वानीन थे ? मिसाल कही की भी दिजिए ? बनू अब्बास के दौर की या मुग़ल एम्पायर के दौर की दिजिए ...?
#कड़वी_सच्चाई
आज हम मजबूर भिखारियो का प्याला लिए हुए अपना कानून मांगते है,अपना तालीम ए निज़ाम मांगते है और एक छोटे से दायरे मे हम ये समझते है कि नबी के वारिस ये उलेमा है मदरसो की चार दिवारी मे तैयार हो रहे है जिनके हाथ मे कानून नही जिनके हाथ मे सियासत नही जिनके हाथ मे मइशत नही जिनके हाथ मे माशियत नही जो हाशिये पर है जिनको तरस वाली निगाहो से देखा जाता है जिन पर इल्ज़ामात थोपो जाते है ...!!
जिनका काम तो ये था वो अबुबकर सिद्दीक रजि०,उमर ए फारूक़ रजि०,उस्मान इब्ने अफ्फान रजि०और अली इब्ने तालीब रजि०की खिलाफत सभालते जिनका काम ये था की पूरी ज़िन्दगी की बागडोर उनके पास होती वो मरजा होते क्या कभी ऐसा हुआ की 1200सौ सालो की तारीख मे तालिम से हमारे किसी भी मुल्क़ मे दो निज़ाम आए या दो क़वानीन थे ? मिसाल कही की भी दिजिए ? बनू अब्बास के दौर की या मुग़ल एम्पायर के दौर की दिजिए ...?
#कड़वी_सच्चाई
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