दिल्ली तुझसे एक सवाल
मजहब के ठेकेदारों से , भारत की सब सरकारों से
मेरा सवाल है ऐ दिल्ली संसद की दीवारों से
हमने तो खून देकर फूल आज़ादी वाला खिला दिया
लेकिन तूने क्या सिला दिया लेकिन तूने क्या सिला दिया
दिल्ली बता तुझे धोखा कब हमने दिया है
दिल्ली बता तुझे धोखा कब हमने दिया है
इतराने के लायक जो कुछ है, सब हमने दिया है
हिंसा का जो इलज़ाम लगाते है , हैवानो सुन लो !
गांधी को भी गांधी का लक़ब हमने दिया है
मजहब के ठेकेदारों से , भारत की सब सरकारों से
मेरा सवाल है ऐ दिल्ली संसद की दीवारों से
हमने तो खून देकर फूल आज़ादी वाला खिला दिया
लेकिन तूने क्या सिला दिया लेकिन तूने क्या सिला दिया
तू भूल गयी है टीपू को, जामिन शहीद को भूल गई,
अहमदुल्ला,अशफ़ाक़ुल्लाह,अब्दुल हमीद को भूल गई,
कुछ भी हो, कही भी हो देश में, जिम्मेदार हम ही कहलाते है ,
इतनी क़ुरबानी देकर भी ,गद्दार हम ही कहलाते है
जितने एहसान हमारे थे,सबको मिटटी में मिला दिया
आखिर तूने क्या सिला दिया ,आखिर तूने क्या सिला दिया
जिस जुर्म पे वो अपराधी है ,हम उसी पे आतंकवादी है
वो करे तो आंदोलनकारी, हम करे तो उन्मादी है
दिल्ली हम सबके साथ तेरी कैसी हमदर्दी दिखती है
तुझको तो दाढ़ी टोपी में बस दहशतगर्दी दिखती है
तोहफे में तूने हम सबको बस नफरत का सिलसिला दिया
सब कुछ मिटटी में मिला दिया ,सब कुछ मिटटी में मिला दिया
(इमरान प्रतापगढ़ी)
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