Wednesday, 13 April 2016

(तौहीद से भरपूर एक बोल)
इंसान तुझे शर्म नहीं आती, खुदा से शिर्क करने में बड़ा मज़ा आता है 
मगर तू नमाज़ से डरता है और गेरुल्लाह से दुनिया में मज़ा पाता है
बस यही तुझे बहुत भाता है
और शिर्क को तू बहुत ज्यादा चाहता है
तुझे सुन्नत से डर लगता है और शिर्क से मुहब्बत पाता है
तुझे मकतब से डर लगता है और खानकाहो से मुहब्बत पाता है
तुझे या अल्लाह से बेचैनी है और या फलाने शाह से दिल्लगी है
तुझे मुहब्बत मस्जिद से कम और तुर्बत से ज्यादा है
तेरा माबुदे हकीकी गेरुल्लाह और काफिरीयत से तुझे मुहब्बत
तेरा सर गेरुल्लाह के आगे झुके और झुकता रहे और झुकता रहे
बस मुश्रिक की यही पहचान है
फिर आप कैसे मुसलमान है
क्या यही मुसलमान की पहचान है
क्या यही सूफ़ियों का दीन है गर यही सूफी है तो फिर सलफ़ी कौन है
और फिर बुखारी व मुस्लिम से तुम्हारा क्या वास्ता
जब तुम्हे सूफियो ने दिया रास्ता
तुम तो लेते हो उनका ही वास्ता
तो खुदा से फिर तुम्हारा है क्या वास्ता
मेरे खुदा मैं रहु तोहीद पर
एक क़ुरआन व रसूल और
एक खुदा कि राह ही हो मेरा रास्ता।
या खुदा बस मुझे तुझी से है आस्था
मैं ना मांगू किसी से ना किसी से कोई कोई वास्ता

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