Monday, 28 March 2016

मुहम्मद (सल्ल.) की संतानों की जन्मतिथियों और उनके जीवन की अवधि को लेकर किताबों में मुस्लिम विद्वानों के अलग मत भी मिलते हैं। मैं इनमें एक प्रामाणिक किताब (अर-रहीकुल मख़तूम) के सन्दर्भ से यहां हूबहू उल्लेख कर रहा हूं ...

इबराहीम के अलावा अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की तमाम संतानें उन्हीं (खदीजा-रजि.) से थीं।

सबसे पहले कासिम पैदा हुए और उन्हीं के नाम पर आपको अबुल कासिम (कासिम के बाप) के उपनाम से जाना जाने लगा। फिर जैनब, रुकय्या, उम्मे-कुलसूम, फातिमा और अब्दुल्लाह पैदा हुए। अब्दुल्लाह की उपाधि तैयब और ताहिर थी।

आपके सब बच्चे बचपन ही में मृत्यु की गोद में चले गए। अलबत्ता बच्चियों में से हर एक ने इस्लाम का जमाना पाया, मुसलमान हुईं और हिजरत की। लेकिन हजरत फातिमा के सिवाय बाकी सब का देहांत आपकी जिंदगी ही में हो गया। हजरत फातिमा की मृत्यु आपके छह महीने बाद हुई।

नबी (सल्ल.) की पुत्री जैनब का विवाह अबुल-आस से हुआ। वे खदीजा (रजि.) के भांजे लगते थे तथा रबी के पुत्र थे। रुकय्या व उम्मे-कुलसूम का विवाह उत्बा व उतैबा से किया गया। ये दोनों अबू-लहब के पुत्र थे। फातिमा का विवाह अली से हुआ।

ये पंक्तियां इस किताब से यहां पेश करने में मुझे दो मिनट लगे हैं और आप शायद आधी मिनट से भी कम समय में पढ़ चुके होंगे। मगर जिन पर यह गुजरी थी, उनका दुख कैसा रहा होगा? इसका अनुमान भी नहीं लगा सकते।

बच्चे-बच्चियों से घर भरने के बाद उन्हें खोने का अहसास बहुत दुखद होता है। जिन्हें गोद में बैठाकर प्यार किया हो, उन्हें मिट्टी के हवाले करना दुनिया का सबसे मुश्किल काम होता है। रब से प्रार्थना है कि कोई औलाद अपने मां-बाप को यूं छोड़कर न जाए।

रब ने आपकी गोद से ये बच्चे ले लिए तो जैद आपकी सरपस्ती में बेटा बनकर आए। अभी एक बेटा और आना था। उनके आने की घटना यूं है कि एक बार अरब में सख्त अकाल पड़ा।

कहते हैं कि लोग वर्षों तक उसे भूल नहीं पाए। उस अकाल ने लोगों को बेहाल कर दिया। कई धनवान दरिद्र हो गए, मालदार दाने-दाने के मोहताज हो गए।

आपके चाचा अबू-तालिब काफी मुश्किलों में थे। उनके जितने बच्चे थे, उसके अनुसार भोजन व आवश्यक सुविधाओं का प्रबंध कठिनाई से हो पाता था।

मुहम्मद (सल्ल.) के एक चाचा का नाम अब्बास था। उनकी गिनती धनवानों में होती थी। एक दिन आपने उन्हें सुझाव दिया- हम दोनों चाचा अबू-तालिब के दो बच्चों का पालन-पोषण करें। इससे उनकी गृहस्थी का कुछ बोझ कम हो जाएगा, कठिनाइयों में कमी आ जाएगी।

इन चाचा को आपका यह सुझाव ठीक लगा, वे मान गए। दोनों चाचा-भतीजा अबू-तालिब के पास गए। उनके सामने यह प्रस्ताव रखा।

अबू-तालिब बोले, रब तुम दोनों का भला करे। मेरी ओर से कोई आपत्ति नहीं है। इन बच्चों में से जिन दो को चुनना चाहो, चुन लो।

इस सहमति के बाद आपने (सल्ल.) अली को चुना और अब्बास ने जाफर को चुन लिया।

अब तक की घटनाओं में आपने पढ़ा कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) का दिल कितना बड़ा था। उसमें सबके लिए जगह थी। गुलामों ने वहां इज्जत पाई तो गरीबों ने मुहब्बत।

विधवा हो या अनाथ, आपने (सल्ल.) सब पर दया की दौलत लुटाई। ये तो सिर्फ कुछ झलकियां थीं जो किताबों में आ गईं। असल जिंदगी की झलकियां इनसे बहुत ज्यादा और बहुत उज्ज्वल थीं।

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शेष बातें अगली किश्त में

- राजीव शर्मा -

गांव का गुरुकुल से

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