#वर्ल्ड_सूफी_फोरम
आज के सूफिज्म के लिए
भारत माता हो गया गाय भी माता हो गई
और इसके साक्षी बने पाकिस्तान से आये तथाकथित आलिम
डॉ. ताहिरुल क़ादरी जो कहते है कि भारत माता की जय बोलना इस्लाम में जायज़ है।
जब इसे इंग्लिश में मदरलैंड कह सकते है और उर्दू में मादरे वतन कह सकते है तो फिर अपने वतन को माँ का दर्जा क्यों नहीं दे सकता। ये ताहिरुल पादरी साहब का कहना है जिनके नजदीक मेरी क्रिसमस डे मनाना भी जायज़ है यानि ये अक़ीदा रखना की मरयम या ईसा अलैहिस्सलाम का बर्थडे वगैरा सब जायज़ है। या ईसाइयो का अक़ीदा उनके नजदीक जायज़ है। उन्हें अक़ीदा सूफिज्म से और अक़ीदा यहूद व ईसाइयत से इस क़दर मुहब्बत है कि वो पहले अपनी बड़ी दाढ़ी रखते थे मगर अब वो घटते घटते घट ही गई।
मैं किसी को गलत नहीं कह रहा मैं आँख खोल रहा हूँ टीवी पर बैठने वाले सूफी संतो की जो अपनी विचारधारा को प्रस्तुत करते है और बाकी को इस्लाम से ख़ारिज करने की भरपूर कोशिश करते है कहते है की आतंकवाद सिर्फ और सिर्फ मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब या इब्ने तैमिया की विचारधारा को मानने वालो ने फैला रखा है।
कुल मिलकर वो यह साबित करने की कोशिश कर ही रहे है की इस्लाम में आतंकवाद होता है और एक-दो नहीं बल्कि करोडो मुस्लिम आतंकवाद में शामिल है। अब ऐसे सूफियों को कौन बताये की तुम टीवी या मीडिया में घुसकर क्या फैला रहे हो ये कौनसा जहर उगल रहे हो ?
क्या ये जहरीला बयानबाजी वाला आतंकवाद नहीं ! क्या बोलना चाहिए हमें हम सलफ़ी को आतंकी बताते है क्या बशर असद सूफियों का बाप लगता है , आज तक उम्मते मुस्लिम एक करोड़ से ज्यादा मर चुकी क्या ये मुस्लिम कर सकता है
हरगिज़ नहीं ! क्यूंकि इस्लाम नाम है मुहब्बत का अमन का शांति का।
हम हर आतंक का बायकॉट करते है क्यूंकि इस्लाम में एक बेकसूर का क़त्ल सारी मानवता का क़त्ल है।
तो फिर ये सूफी क्या कर रहे है क्या ये 2002 को भुला चुके क्या गुजरात में मुसलमानो ने ही मुसलमानो को मार। क्या औरतो के पेट चीर के बच्चो का क़त्ल मुसलमानो ने किया , तो फिर आज उसे अपना मालिक अपना बाप क्यों समझने लग गए ये आज के तथाकथित सूफी !
हकीकत तो ये है की ये सूफी नहीं सूफी के वेश में शैतान है और कुफी व लायुफी (वफ़ा के लायक नहीं) है।
सूफी हज़रत ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती थे , शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी र. अ. थे।
सूफी की परिभाषा ही बदल दी गई। आज के सूफी गद्दीनशीन दरगाहो खानकाहों पर बैठे और लोगो से चढ़ावे के नाम पर लूट-खसोट कर रहे है।
क्या ये जायज़ है क्या चढ़ावा अल्लाह के अलावा किसी और जगह जायज़ है।
क्या इससे उम्मते मुस्लिमा तालीम व तरबियत हासिल करेगी क्या इससे खुराफातें व फालतू रस्म ओ रिवाज ख़त्म।
आखर इन पर जवाब क्यों नहीं !
क्या इस्लाम यह सिखाता है की हर रोज़ नए नए मजार बनाओ और उन्हें दरगाह बना कर उर्स भरो और इसी में आपकी नजात है बाकी मस्जिद में नमाज़ शिर्क से दूरी रोज़ो से प्यार सब भूल जाओ।
सब सूफिज्म के अक़ीदे पर चलो क़ुरान और हदीस को सूफिज्म के हिसाब से समझो अपनी अक़्ल बिलकुल न लगाओ तब ही आपकी नजात है।
क्या इस्लाम हमें यही सिखाता है ?
जब दिल दे देना मेरे इस्लामी भाइयो या फिर टीवी पर डिबेट करते रहना हमेशा और एक-दूसरे को लानत-मलामत करते रहना।
आज के सूफिज्म के लिए
भारत माता हो गया गाय भी माता हो गई
और इसके साक्षी बने पाकिस्तान से आये तथाकथित आलिम
डॉ. ताहिरुल क़ादरी जो कहते है कि भारत माता की जय बोलना इस्लाम में जायज़ है।
जब इसे इंग्लिश में मदरलैंड कह सकते है और उर्दू में मादरे वतन कह सकते है तो फिर अपने वतन को माँ का दर्जा क्यों नहीं दे सकता। ये ताहिरुल पादरी साहब का कहना है जिनके नजदीक मेरी क्रिसमस डे मनाना भी जायज़ है यानि ये अक़ीदा रखना की मरयम या ईसा अलैहिस्सलाम का बर्थडे वगैरा सब जायज़ है। या ईसाइयो का अक़ीदा उनके नजदीक जायज़ है। उन्हें अक़ीदा सूफिज्म से और अक़ीदा यहूद व ईसाइयत से इस क़दर मुहब्बत है कि वो पहले अपनी बड़ी दाढ़ी रखते थे मगर अब वो घटते घटते घट ही गई।
मैं किसी को गलत नहीं कह रहा मैं आँख खोल रहा हूँ टीवी पर बैठने वाले सूफी संतो की जो अपनी विचारधारा को प्रस्तुत करते है और बाकी को इस्लाम से ख़ारिज करने की भरपूर कोशिश करते है कहते है की आतंकवाद सिर्फ और सिर्फ मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब या इब्ने तैमिया की विचारधारा को मानने वालो ने फैला रखा है।
कुल मिलकर वो यह साबित करने की कोशिश कर ही रहे है की इस्लाम में आतंकवाद होता है और एक-दो नहीं बल्कि करोडो मुस्लिम आतंकवाद में शामिल है। अब ऐसे सूफियों को कौन बताये की तुम टीवी या मीडिया में घुसकर क्या फैला रहे हो ये कौनसा जहर उगल रहे हो ?
क्या ये जहरीला बयानबाजी वाला आतंकवाद नहीं ! क्या बोलना चाहिए हमें हम सलफ़ी को आतंकी बताते है क्या बशर असद सूफियों का बाप लगता है , आज तक उम्मते मुस्लिम एक करोड़ से ज्यादा मर चुकी क्या ये मुस्लिम कर सकता है
हरगिज़ नहीं ! क्यूंकि इस्लाम नाम है मुहब्बत का अमन का शांति का।
हम हर आतंक का बायकॉट करते है क्यूंकि इस्लाम में एक बेकसूर का क़त्ल सारी मानवता का क़त्ल है।
तो फिर ये सूफी क्या कर रहे है क्या ये 2002 को भुला चुके क्या गुजरात में मुसलमानो ने ही मुसलमानो को मार। क्या औरतो के पेट चीर के बच्चो का क़त्ल मुसलमानो ने किया , तो फिर आज उसे अपना मालिक अपना बाप क्यों समझने लग गए ये आज के तथाकथित सूफी !
हकीकत तो ये है की ये सूफी नहीं सूफी के वेश में शैतान है और कुफी व लायुफी (वफ़ा के लायक नहीं) है।
सूफी हज़रत ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती थे , शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी र. अ. थे।
सूफी की परिभाषा ही बदल दी गई। आज के सूफी गद्दीनशीन दरगाहो खानकाहों पर बैठे और लोगो से चढ़ावे के नाम पर लूट-खसोट कर रहे है।
क्या ये जायज़ है क्या चढ़ावा अल्लाह के अलावा किसी और जगह जायज़ है।
क्या इससे उम्मते मुस्लिमा तालीम व तरबियत हासिल करेगी क्या इससे खुराफातें व फालतू रस्म ओ रिवाज ख़त्म।
आखर इन पर जवाब क्यों नहीं !
क्या इस्लाम यह सिखाता है की हर रोज़ नए नए मजार बनाओ और उन्हें दरगाह बना कर उर्स भरो और इसी में आपकी नजात है बाकी मस्जिद में नमाज़ शिर्क से दूरी रोज़ो से प्यार सब भूल जाओ।
सब सूफिज्म के अक़ीदे पर चलो क़ुरान और हदीस को सूफिज्म के हिसाब से समझो अपनी अक़्ल बिलकुल न लगाओ तब ही आपकी नजात है।
क्या इस्लाम हमें यही सिखाता है ?
जब दिल दे देना मेरे इस्लामी भाइयो या फिर टीवी पर डिबेट करते रहना हमेशा और एक-दूसरे को लानत-मलामत करते रहना।
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