Tuesday, 15 December 2015

ईद मीलादुन्नबी
"खुद बदलते नहीं क़ुरआन का मफ़हूम बदल देते है ,
अपने हाथों से ही सुन्नत को क़त्ल कर देते है "

मीलाद का मअना अरबी में पैदाइश के होते है
उर्दू में पैदाइश की ख़ुशी मनाने को सालगिरह कहते है
हिंदी में जन्मअष्टमी कहते है।

प्यारे नबी ﷺ की पैदाइश की तारीख क्या थी वो अल्लाह ही बेहत्तर जानने वाला है। 
क्यूंकि उस वक़्त को भी रावी (यानि रिवायत लिखने वाले) मौजूद नहीं थे अक्सरियत काफिरो , मुश्रिकों और फासिको की थी।  जिनकी बात क़ाबिले क़ुबूल नहीं की जा सकती है। 

खुद नबी  के खानदान वाले मुशरिक थे , इनको ये मालूम न था की जिस बच्चे की उनके घर में पैदाइश हुई है वो नबी है। 
खुद नबी   को भी 40 साल तक ये मालूम न था की किताब (क़ुरआन) क्या होता है ? नबी   राहे हक़ की तलाश में सरगर्दां रहते थे। 

वाज़ेह हो की मीलाद (बर्थडे)  इंसान खुद अपनी ज़िन्दगी में मनाता है लेकिन पुरे ज़खीरा ए हदीस (तमाम हदीस की किताबो) में कोई एक रिवायत भी ऐसी नहीं पाई जाती के जिससे ये साबित हो के नबी  ने अपनी सालगिरह मनाई हो। 

और न ही कभी सहाबा, ताबेईन, तबे-ताबेईन ने नबी   की मीलाद (सालगिरह) हो या केक वगेरा काटा हो। 

नबी   का फरमान है की "मुसलमानो की दो ईदे है 1 ईदुल फ़ित्र 2 ईदुल अज़हा 
तो अब सवाल यह पैदा होता है की ये तीसरी ईद मनाने वाले कौनसे मुसलमान है ?

मौलवियो और पीरो ने अपने पेट की खातिर ये तीसरी ईद मीलाद उन नबी   के नाम से गढ़ कर लोगो को दी। 
रसूलुल्लाह   फरमाते है ,"यक़ीनन सबसे सच्ची बात किताबुल्लाह है और बेहतरीन तरीका मुहम्मद   का तरीका है और कामो में बदतरीन काम इस (अल्लाह और उसके रसूल   की शरीअत) में नया काम ईज़ाद करना है और (ऐसा) नया काम बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही जहन्नुम में ले जाने वाली है।  
(सुनन नसाई, किताब सलातुल ईदेंन )
नाम निहाद मुसलमान यहूद ओ नसारा , और हिन्दू से मुतास्सिर होकर क्रिसमस जन्मआष्ट्मी बर्थडे सालगिरह की तरह मीलाद मनाते है। जबकि नबी  ﷺ  का वाजेह फरमान है , "जिसने किसी कौम से मुशाबेहत इख़्तियार की वो उन्ही में से हुआ।  (सुनन अबु दावूद, जिल्द न. 03, हदीस न. 4031)
नबी  ﷺ  की वफ़ात के वक़्त कमोबेश एक लाख सहाबा मौजूद थे। 
और 12 रबीउल अव्वल नबी  ﷺ  की वफ़ात का दिन है। उस दिन हर हर सहाबी ग़मगीन और अफ़सुर्दा थे। काफिरो मुश्रिकों ने खुशियाँ मनाई थी। 
आज ये फ़िरक़ा-परस्त मोलवी भी 12 रबीउल अव्वल को खुशियाँ मनाते है हालाँकि चंद वक़्त पहले ये मोलवी और पीर खुद 12 रबीउल अव्वल को 12 वफ़ात कहा करते थे। 
अफ़सोस ! 
"खुद बदलते नहीं क़ुरआन का मफ़हूम बदल देते है ,
अपने हाथों से ही सुन्नत को क़त्ल कर देते है "


1 comment:

Unknown said...

इतना बड़ा जाहिल मैने आज तक नहीं देखा