Tuesday, 15 December 2015

"इमाम अहम्मद ने जिक्र किया कि मुआज बिन जबल रजि0 से रिवायत है कि नबी सल्ल0 ने मुझसे फ़रमाया कि अल्लाह के साथ किसी चीज़ को शरीक न करना, चाहे तुम कत्ल कर दिए जाओ या जला दिए जाओ।"
‪#‎अर्थात‬ अल्लाह के सिवा किसी को न मानो और न उससे डरो कि शायद कोई जिन्न भुत कुछ तकलीफ पहुंचा दे ।
#अर्थात मुसलमानो को जिस तरह दिखने वाली बलाओं पर सबर करना चाहिए और इनके डर से अपना दिन नहीं बिगाड़ना चाहिए इसी तरह जिन्न और भूतों की तकलीफ पर भी सबर करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि हकीकत में हर काम अल्लाह ही के अधिकार में है मगर वह कभी-कभी अपने बन्दों को आजमाता है और बुरों के हाथ से नेक लोगों को तकलीफ पोहचाता हैताकि कच्चे और पक्के में फर्क हो जाए और मोमिन व मुनाफ़िक़ अलग-अलग मालुम हों ।
जैसे देखने में नेकों को गुनाहगारों के हाथ से और मुसलमानों को काफिरों के हाथ से अल्लाह के इरादे से तकलीफ पहुच जाती है और उन्हें वहां सबर ही करना पड़ता है और दिन नहीं बिगाड़ना पड़ता है और इसी तरह नेक आदमी को कभी-कभी जिन्न और शैतान के हाथों से अल्लाह के इरादे से तकलीफ़ पहुच जाती है उस पर सबर ही करना चाहिए और उन्हें कभी नहीं मानना चाहिए।
इस हदीस से पता चला कि यदि कोई आदमी शिर्क से नफरत करे तो गैर अल्लाह को मानना छोड़ दे और उनकी नज़्र व नियाज़ मानने को बुरा जाने।
गलत रस्मों को छोड़ दे।
इसमें उसका कुछ नुक्सान माल का ,या औलाद का या जान का पहुंच जाए या कोई शैतान किसी पीर, शहीद का नाम लेकर तकलीफ़ देने लगे तो इस पर सबर करे और अपनी बात पर कायम रहे और समझे कि अल्लाह मेरा दीन जांचता है और जैसे अल्लाह जालिम आदमी को ढील देकर पकड़ता है और मज़्लूमों को उनके हाथ से छुड़ाता है इसी तरह ज़ालिम जिन्नों को भी अपने वक़्त पर पकड़ेगा और नेक लोगों को तकलीफ से बचाएगा।

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