हज़रत अबु हुरैरा र. अ. से रिवायत है की एक आदमी ने नबी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया की मुझे कुछ वसीयत फरमाये , तो आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया , गुस्सा न किया कर। उसने कई बार पूंछा , लेकिन आपने यही फ़रमाया , गुस्सा न किया कर। (मुख़्तसर सहीह बुखारी )
एक रिवायत में है की सवाल करने वाले ने रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम से कहा , मुझे मुख़्तसर सी नसीहत फरमाये, ताकि मैं उस पर अमल करके जन्नत हासिल कर सकु। तो आपने फ़रमाया की गुस्सा न किया कर। इससे तुझे जन्नत मिल जाएगी। (फत्हुलबारी 10 / 519 )
बुखारी की रिवायत में है की अगर ज्यादा गुस्से के वक्र "अऊज़ु बिल्लाहि मिनशशयतानिर्रजीम" पढ़ लिया जाये तो गुस्सा ख़त्म हो जाता है। (सहीह बुखारी 6115 )
एक रिवायत में है की सवाल करने वाले ने रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम से कहा , मुझे मुख़्तसर सी नसीहत फरमाये, ताकि मैं उस पर अमल करके जन्नत हासिल कर सकु। तो आपने फ़रमाया की गुस्सा न किया कर। इससे तुझे जन्नत मिल जाएगी। (फत्हुलबारी 10 / 519 )
बुखारी की रिवायत में है की अगर ज्यादा गुस्से के वक्र "अऊज़ु बिल्लाहि मिनशशयतानिर्रजीम" पढ़ लिया जाये तो गुस्सा ख़त्म हो जाता है। (सहीह बुखारी 6115 )
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