Friday, 12 September 2014

हज़रत अबु हुरैरा र. अ. से रिवायत है , उन्होंने फ़रमाया की नबी सल्ललाहु अलैहिवसल्लम जुमे के दिन फ़ज़्र की नमाज़ में "अलिफ -लाम -मीम तंजिलु (सज़दा ) और हल अता अलल इंसान " पढ़ा करते थे।  (मुख़्तसर सहीह बुखारी )

हज़रत अबु हुरैरा र. अ. से रिवायत है की रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की : जुमे के दिन जब इमाम ख़ुत्बा दे रहा हो , अगर तूने अपने साथी से कहा की खामोश हो जा तो बेशक तूने खुद एक गलत हरकत की है।  (मुख़्तसर सहीह बुखारी )


हज़रत इब्ने उम्र र. अ. से रिवायत है , उन्होंने कहा , नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है की कोई आदमी अपने भाई को उसकी जगह से उठाकर खुद वहां बेथ जाये।
पूंछा गया , क्या यह हुक्म जुमे के लिए खास है ?
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की नहीं , बल्कि जुमे और गैर - जुमे दोनों के लिए यही हुक्म है।  (मुख़्तसर सहीह बुखारी )

मतलब ये है की अपने मुस्लिम भाई को उठाकर उसकी जगह नहीं बैठना चाहिए और जुमे में नज़र सामने रखना चाहिए न की इधर - उधर , अगले - बगले झांकना चाहिए।  जुमे का एहतराम करना चाहिए।
जुमे के दिन मिस्वाक करना चाहिए,हो सके तो बेहतरीन लिबास पहनना चाहिए , खुशबु लगनी चाहिए।

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