वेद और क़ुरआन का धर्म एक ही है :
एक ईश्वर ने जो धर्म बनाया उसमे आगे चलकर अनेक कमिया आ गयी अत: उसी प्राचीन व शास्वत धर्म को स्थापित करने हज़रात मनु (नूह ) अ. स. आये तथा धर्म ग्रन्थ वेद संसार को दिए। फिर उसी ईश्वर की इच्छापूर्ति के लिए हज़रत मूसा अ. स. धर्म ग्रन्थ तौरेत के साथ आये। हज़रत ईसा अ. स. भी इंजील में वही आदेश लए तथा अंत में हज़रत मुहम्मद स. अ. .व. क़ुरआन के साथ उसी एक धर्म को स्थापित करने आये। एक ईश्वर की इच्छा प्रत्येक युग मनुष्यो के लिए भिन्न - भिन्न नहीं हो सकती। फिर ये कैसे हुआ की आदिकाल में मनु अ. स. ने मनुष्यो को हिन्दू धर्म सिखाया , मूसा अ. स. ने हज़ारो वर्ष बाद आकर उन्हें यहूदी बना दिया , ईसा अ. स. ने फिर उन्हें ईसाई बनाया तथा अंत में हज़रत मुहम्मद स. अ. व. ने मुस्लमान बनने को कहा। ऐसा हो नहीं सकता। हम से अवश्य ही भारी भूल हुई। है। यदि यह सभी ईश्दूत , यह सभी ऋषिगण सच्चे थे और अवश्य ही सच्चे थे , उनके अपने जीवन इस के साक्षी है , उन के लाये हुए ईश्वरीय ग्रन्थ इस के गवाह है थो उन सभी ने एक ही धर्म की शिक्षा दी होगी। नाम उस धर्म भले ही उन्होंने अपनी - अपनी भाषा में बताया हो। क़ुरआन इसे इस प्रकार स्पष्ट करता है -
उस ईश्वर ने तुम्हारे लिए वही धर्म नियुक्त किया जो उस ने नूह (मनु) पर अवतीर्ण किया था और जो हमने (ऐ मुहम्मद ) तुम पर अवतीर्ण किया जो हमने इब्राहिम व ईसा पर यह कहते हुए उतारा था की (इसी ) धर्म को स्थापित करना तथा इसमें परस्पर टुकड़े - टुकड़े न होना।
क़ुरआन बताता है -
और इंसान थो एक ही मत के मानने वाले थे फिर ( बाद में ) उन्होंने (परस्पर ) मतभेद किया। ....
इस सदा से चले आ रहे धर्म का नाम क़ुरआन ने अरबी भाषा में "इस्लाम" बताया।
इस्लाम धर्म का ही नाम क़ुरआन "सनातन धर्म" (दीन -ए -क़य्यिम ) बताता है।
क़ुरआन उस नाम "शाश्वत धर्म " (दीन -ए -क़य्यिम ) बताता है।
हज़रत मुहम्मद स. अ. व. ने क़ुरआन के धर्म को "स्वधर्म " तथा "स्वभाव नियत कर्म " (दीन -ए -फितरत ) बताया।
अब खुद देख ले की मानव जाति प्रथम सिरे सनातन धर्म /शास्वत धर्म ईश्वर ने स्थापित किया था , , क़ुरआन भेजते समय तक , उसका . और यह बताया की धर्म सदा से यही एक रहा है परन्तु लोगो ने अपनी इच्छा अनुसार परस्पर विरोध करके भिन्न -भिन्न मत बना लिए। सच्चाई जानना ज़रा भी मुश्किल नहीं है।
हाँ ! इस के लिए अपने आडम्बरो को अवश्य त्यागना होगा। ईश्वरीय ग्रन्थ मौजूद है। तुलना करके देख ले। वेद उठा कर देख ले। क़ुरआन पढ़कर देखे। मूल मान्यताये एक ही है। मूल धर्म है। धर्म का नाम भी एक है। जब पहले सिरे तथा अंतिम सिरे धर्म ग्रन्थ एक ही धर्म प्रस्तुत करते तो अवश्य ही बीच सारे ग्रंथो ने भी वही एक धर्म दिया होगा।
आशा है की आप इस पोस्ट अच्छे से गौर करोगे।
आपका भाई - ब्रदर सद्दाम हुसैन अन्सारी
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