Tuesday, 7 June 2016



एक बार रमजान के शुरू में हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ि ने मस्जिद में बयान फ़रमाया कि लोगो बैठ जाओ और फिर फ़रमाया की यह महीना वो है जिसके रोज़े तुम पर फ़र्ज़ और लाजिम किये गए हैं लेकिन इसका क़ियाम(रात की नमाज़)(तरावीह) तुम पर जरुरी या लाज़िम नहीं की गई इसलिए जिस से पढ़ी जा सके वो पढ़ ले क्योंकि ये अफज़ल नफ्ल नमाज़ है और जो ना पढ़ सके वो अपने बिस्तर पर आराम करे।और किसी को यह बात नहीं कहनी चाहिए कि अगर फला रोज़ा रखेगा तो मैं भी रखूँगा या फला नमाज़(तरावीह) पढ़ेगा तो मैं भी पढूंगा बल्कि जो भी करे अल्लाह के लिए करे।।
(मफ़हूम रिवायत )(मुसन्नफ अब्दुर रज़्ज़ाक जिल्द 4 पेज 265 हदीस:7748)



रमज़ान की रातो मे नमाज़ पढने की फज़ीलत..
"अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने रमजान की रातो में ईमान और सवाब की नियत के साथ नमाज़ पड़ी उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ हो जाएँगे"

सही बुखारी , जिल्द 3, हदीस 2009.

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