Monday, 11 April 2016

बेशक ! हमें इस तरफ तवज्जो देना पड़ेगी 
हमें मस्जिद बनाने में फख्र होने लगा है लेकिन नमाज़ हम पढ़ते नहीं 
खूबसूरत से खूबसरत मस्जिदे तामीर करने में लगे है और उनपर घमण्ड (फख्र) करने लग गए 
पहले मस्जिदे कच्ची होती थी मगर मुस्लिम ईमान वाले हुआ करते थे उनके फैसलों पर दुनिया फख्र करती थी 
और आज इस्लाम के नाम पर दीन को दिखावे के तौर पर उपयोग में लाया जा रहा है। 
अखलाक हमारे अंदर से गायब है पाकि व नापाकी का ख्याल हमने छोड़ दिया है सफाई की तो पूंछो मत 
कोई अण्डा या गोश्त या मछली खाता है तो उसके छिलके या हड्डी बिच सड़क में डालता है। तो यह क्या है ?
क्या यह आपकी अच्छाई है ?
क्या हमें तालीम व तरबियत पर तवज्जो नहीं करना चाहिए 
या सिर्फ फुजूलखर्ची व शादियों में नाच-गानों व उरयानियत परोसना चाहिए। 
हमें टेकनिकल मदारिस तैयार करने होंगे हमें क़ुरआन व हदीस को सहीह तरीके से समझना होगा। 
हमें आतंक के लेबल को हटाने के लिए गैरमुस्लिम भाइयो को इस्लाम से रूबरू करवाना होगा 
हमें मुस्लिम अफ़राद को भी आज के दौर के सबसे जरुरी फ़र्ज़ "इल्म" से जोड़ना होगा उन्हें इल्म की जरुरत है और इल्म नहीं तो सब कुछ बेकार है। हमें सहाबा किराम का मनहज अख्तियार करना होगा हमें सलफ़ी मनहज को अख्तियार करना होगा। हमें पश्चिमी संस्कृति के विपरीत क़ुरआन व हदीस के मफ़हूम को समझना होगा और इसी में हमारी असल कामयाबी है। 

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