Monday, 28 March 2016

तथाकथित सूफिया के हालात का ध्यानपूर्वक अध्ययन करे तो उसमे हल्लाज जैसे लोग भी मिलेंगे जिसने खुदाई का दावा किया और अनल हक़ का नारा लगाया उसे सरे आम फांसी पर चढ़ा दिया गया।
अल्लाह ने पहले ही फ़रमाया :
"अल्लाह तआला ही हक़ है, वही मुर्दो को ज़िंदा करता है। "
(सूरह : हज्ज: 6)
कुछ मुसलमान जो शरीअत इस्लामिया से संतुष्ट नहीं थे उन्होंने शरीअत के समानान्तर एक नई व्य्वस्था बनाई और उसे तरीकत का नाम दिया।  जिसमे चिल्लाकशी , क़व्वालियाँ, फ़लसफ़ी ज़िन्दगी,, सन्यासी जीवन,फ़ना व बका , अक़ीदा हुलुल, वहदतुल वुजूद, वहदत उस शहूद,आदि है।
सूफियो के नजदीक सर व जिस्म को हरकत देना व अजीब किस्म का नाच भी जायज़ है।
तथाकथित सूफी यह दावा भी करते है कि जब विसाल (मिलाप) की मंजिल मिल जाती है तो फिर शरीअत के खुले अरकान जैसे पांचो समय की नमाज़ की पाबन्दी ख़त्म हो जाती है।
मिस्र में आज भी जेनब व सय्यद अलबदावि के मजारो के गिर्द तवफ किया जाता है।
सूफीवाद की बातो का जवाज साबित करने के लिए आयते क़ुरआन के भावार्थ में हेरफेर की गई शिर्किया नजरयात जनसामान्य में फैलाए गए।  संगीत जायज़ ठहराया गया और मादक पदार्थो का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया गया।
मैं यह कहते हुए बात ख़त्म करना चाहता हूँ कि
अल्लाह का दोस्त वही होता है जो उन चीज़ो को देखता सुनता और उनकी तरफ जाता है जो अल्लाह तआला ने हलाल की है और ऐसी तमाम चीज़ो से बचता है जो हराम की तरफ ले जाती हो।  यही सीधा रास्ता है और हमें इसी को इख़्तियार करना चाहिए।
सूफी ला युफी (सूफी वफ़ा के लायक नहीं)

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