Friday, 12 February 2016

एक नौमुस्लिम से पूंछा कौनसी अच्छी लगी 
बुत्तपरस्ती या खुदा की बंदगी अच्छी लगी ?
चल न पाया मैं किसी के नक़्शे कदम पर उम्र भर 
बस मुहम्मद मुस्तुफा की पैरवी अच्छी लगी 
आम कर दी फत्हे मक्का पर मुआफ़ी आप ने 
आज तक आका की वो दरया दिली अच्छी लगी 
लौट आए हो मदीने से मगर बतलाओ तो 
मौत अच्छी थी वहा की या ज़िन्दगी अच्छी लगी 
बू जहल भी कौले अहमद सच समझता था मगर 
बुत्तपरस्ती इसलिए की, सरवरी अच्छी लगी 
पूँछते क्या हो दरे अहमद की सुब्ह व शाम को 
हर घडी रहमत भरी, हर घडी अच्छी लगी 
चल न पाया एह्तरामन खाके तैयबा पर जिया 
सर के बल पहुँचा, हर इक कुंचा गली अच्छी लगी 





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