Thursday, 17 December 2015

"क़ुरआन के साथ हमारा सुलूक"
मुसलमान भाइयो ! दुनिया में इस वक़्त मुसलमान ही वो खुशकिस्मत लोग है, जिनके पास अल्लाह का कलाम बिलकुल महफूज़,हर तरह की काट-छांट और अदल-बदल से पाक और ठीक-ठीक उन्ही शब्दों में मौजूद है जिन शब्दों में वो अल्लाह के सच्चे रसूल ﷺ पर उतरा था और दुनिया में इस समय मुसलमान ही वह बदकिस्मत लोग है जो अपने पास अल्लाह का कलाम रखते है और फिर भी उसकी बरकतों और अपार नेमतों से महरूम है। क़ुरआन इंसानो के पास इसलिए भेजा गया था की उसको पढ़े , समझे, उस पर चले और उसको लेकर खुदा की ज़मीं पर खुदा के कानून की हुकूमत कायम कर दे।  वह अपनी पैरवी करने वालो को इज़्ज़त और ताकत देने आया था और इतिहास गवाह है की जब उन्होंने किताबुल्लाह पर अमल किया तो उसने उनको दुनिया का ईमाम और पेशवा बनाकर भी दिखा दिया। मगर अब उनके यहाँ उसका प्रयोग सिवाय इसके और कुछ नहीं रहा की उसको घर में रखकर जीन और भूत भगाए, सिर्फ सवाब के लिए बेसमझे -बुझे पढ़ लिया करे। अब यह उससे अपनी ज़िन्दगी के मामलो में हिदायत नहीं मांगते।  यह उससे नहीं पूँछते कि हमारे अखलाक़ कैसे होने चाहिए ? लेन-देन किस तरह करे, दोस्ती-दुश्मनी में किस कानून की पाबन्दी करे ? हमारा दोस्त कौन है और दुश्मन कौन है ? हमारे लिए इज़्ज़त, सलामी और नफा किस चीज़ में है और ज़िल्लत, नामुरादि और नुकसान किस चीज़ में ? ये सारी बाते अब मुसलमानो ने क़ुरआन से पूँछनी छोड़ दी है।  अब वे खुदा से फिरे हुए दुनियापरस्तों से काफिरो और मुश्रिकों से, गुमराह और खुदगर्ज़ लोगो से और खुद अपने नफ़्स के शैतान से इन बातो को पूँछते है और इन्ही के कहे पर चलते है। 
1 ता हा ! हमने यह क़ुरआन तुम पर इसलिए नहीं उतारा कि तुम मुसीबत में पड़जाओ। 
(क़ुरआन : 20:1,2)
2 और जो लोग अल्लाह की उतारी हुई हिदायत के मुताबिक़ फैसला न करे वही कुफ्र करने वाले है। 
(क़ुरआन 5 : 44) 

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