Monday, 15 September 2014

juma ka bayaan................................................

जुम्मा का बयान -

रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "जिसका अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान है उस पर जुमा फ़र्ज़ है।  रोगी,मुसाफिर,औरत,नाबालिग लड़का और गुलाम जुमा की फर्ज़ियत से अपवाद है। " (अगर चाहे तो पढले वर्ना ज़ोहर की  करे। ) (अबु दाऊद ,अब्वाबुल जुमा हदीस 1067 )

रसूलुल्लाह सल्ललल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "जो शख्श ग़ुस्ल करके जुमा के लिए आता है और ख़ुत्बा शुरू होने तक जितना हो सके नवाफिल अदा करता है , फिर ख़ुत्बा-ए-जुमा शुरू से आखिर तक ख़ामोशी के साथ सुनता है तो उसके पिछले जुमा से लेकर इस जुमा तक और अधिक तीन दिन के गुनाह माफ़ कर दिए जाते है। " (मुस्लिम,अलज़ुमा ,हदीस 857)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास र. अ. फरमाते है: मस्जिदे नबवी के बाद जो सबसे पहले जुमा पढ़ा गया वह बहरीन के गाँव जुवासा में अब्दुल कैस की मस्जिद में था। (बुखारी अल्जुमा ,हदीस 892 ,4371 )

असद बिन ज़रारा र. अ. ने "नकीउल खज़मात " के इलाके में बनु बयाज़ की बस्ती "हजमुन नबित " (जो मदीने में एक मील के फासले पर थी )में जुमा क़ायम किया।  (अबु दाऊद,अल्जुमा,हदीस 1069,हाकिम (1/281) ईमाम इब्ने खुज़ैमा ने इसे सहीह कहा है।  हदीस 1724)


रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "अगर गुंजाइश हो तो जुमा के लिए रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले कपड़ो के अलावा कपडे बनाओ। " (इब्ने माज़ा , इकामतिस्सलात,हदीस 1095-1096)

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जुमा के दिन मस्जिद में नमाज़-ए-जुमा से पहले हल्का बनाने से मन फ़रमाया।  (अबु दाऊद,अल्जुमा हदीस 1079 , तिर्मिज़ी सलात हदीस 322 वकाल:हदीस हसन,इमाम इब्ने खुज़ैमा (1816)ने इसे सहीह कहा है। )

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