अहमद रज़ा खान बरेलवी का अजीब फतवा हदीस के खिलाफ
क़ब्रो के गिर्द तवाफ़ करना भी बरेलवी शरीअत में जायज़ है।
" यदि बरकत के लिए क़ब्र के गिर्द तवाफ़ किया तो कोई हर्ज नहीं। "
( बहारे शरीअत 4:133)
(क़ब्रो उर्सो (मेलो) के नाम पर लूटने वालो का फतवा)
अहमद यार गुजराती का फतवा है -
"नमाज़ केवल उसके पीछे जायज़ है जो उर्स आदि करता हो और
जो इन चीज़ो का विरोधी हो उसके पीछे नमाज़ जायज़ नहीं। "
(अल हक़्क़ुल मुबीन 74)
"जो आला हज़रत (अहमद रज़ा) को बुरा कहे उसकी पीछे भी
नमाज़ जायज़ नहीं। "
( फतवा नईमिया -67)
"वहाबियों को मुसलमान समझने वाले के पीछे भी नमाज़ जायज़ नहीं। "
( फतवा रिज़विया 6 : 80-81)
"वहाबियों के सलाम का जवाब देना हराम है।"
(फतावा अफ्रीका - 170)
खुद आला हज़रत का कहना है ना की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का की
"वहाबी सबसे बुरा मुर्तद है उनका किसी जानवर से भी नहीं हो सकता जिससे होगा खालिस जिना होगी। "
(फतावा रिज़विया 5 : 194)
और आगे इरशाद है :
"यहूदियों का जिबह हलाल है मगर वहाबियों का जिबह केवल नजिस व मुर्दार और हराम है
अगरचे लाख बार अल्लाह का नाम ले और कैसे ही मुत्तक़ी , परहेज़गार बनते हो कि ये सब
मुर्तद है। "
(अह्कामे शरीअत - 122)
ऐसे जानी कि जिनका जिना करना साबित हो चूका हो उनका जिबह हलाल है। "
(फतावा रिज़विया - 27)
बरेल्वियत की नजर में उनके दौर के सभी पढ़े-लिखे विद्वान और आज़ादी के चाहने वाले भी काफिर थे
जिनके नाम इस तरह है
मुहम्मद अली जिन्ना
अल्लामा इक़बाल
मोहम्मद जफ़र अली खान
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
सर सय्यद अहमद खान
मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली
डिप्टी नजीर अहमद
शिबली नोमानी खान देहलवी
मौलाना महमूदुल हसन
आदि।
क़ब्रो के गिर्द तवाफ़ करना भी बरेलवी शरीअत में जायज़ है।
" यदि बरकत के लिए क़ब्र के गिर्द तवाफ़ किया तो कोई हर्ज नहीं। "
( बहारे शरीअत 4:133)
(क़ब्रो उर्सो (मेलो) के नाम पर लूटने वालो का फतवा)
"नमाज़ केवल उसके पीछे जायज़ है जो उर्स आदि करता हो और
जो इन चीज़ो का विरोधी हो उसके पीछे नमाज़ जायज़ नहीं। "
(अल हक़्क़ुल मुबीन 74)
"जो आला हज़रत (अहमद रज़ा) को बुरा कहे उसकी पीछे भी
नमाज़ जायज़ नहीं। "
( फतवा नईमिया -67)
"वहाबियों को मुसलमान समझने वाले के पीछे भी नमाज़ जायज़ नहीं। "
( फतवा रिज़विया 6 : 80-81)
"वहाबियों के सलाम का जवाब देना हराम है।"
(फतावा अफ्रीका - 170)
खुद आला हज़रत का कहना है ना की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का की
"वहाबी सबसे बुरा मुर्तद है उनका किसी जानवर से भी नहीं हो सकता जिससे होगा खालिस जिना होगी। "
(फतावा रिज़विया 5 : 194)
और आगे इरशाद है :
"यहूदियों का जिबह हलाल है मगर वहाबियों का जिबह केवल नजिस व मुर्दार और हराम है
अगरचे लाख बार अल्लाह का नाम ले और कैसे ही मुत्तक़ी , परहेज़गार बनते हो कि ये सब
मुर्तद है। "
(अह्कामे शरीअत - 122)
ऐसे जानी कि जिनका जिना करना साबित हो चूका हो उनका जिबह हलाल है। "
(फतावा रिज़विया - 27)
बरेल्वियत की नजर में उनके दौर के सभी पढ़े-लिखे विद्वान और आज़ादी के चाहने वाले भी काफिर थे
जिनके नाम इस तरह है
मुहम्मद अली जिन्ना
अल्लामा इक़बाल
मोहम्मद जफ़र अली खान
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
सर सय्यद अहमद खान
मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली
डिप्टी नजीर अहमद
शिबली नोमानी खान देहलवी
मौलाना महमूदुल हसन
आदि।
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